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08- 08- 22धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 18




ज़ोया जैसे ही दरवाज़ा खोलती है  उसका चेहरा खिल उठता है क्यूंकि दरवाज़े पर कोई और नही उसकी बहन आरज़ू खड़ी थी ।

ज़ोया ने उसे प्यार से गले लगाया  और बोली " आपी कितने दिनों बाद आयी हो, कोई क्या इतने दिनों बाद मिलने आता है  अपनी बहन से "

"क्या करू ज़ोया समय ही नही मिल पा रहा था  तू तो जानती ही है  मेरे ससुराल वालो को  मेरे मायके आने के नाम से तो उन्हें मिर्चे लग जाती है  " आरज़ू ने कहा

"अच्छा दूल्हा भाई नही आये  वो कहा है  " ज़ोया ने पूछा 

"सब  दरवाज़े पर ही पूछ लेगी या अंदर भी आने देगी " आरज़ू ने कहा

"ओह, सॉरी आपी मुझे माफ करना आपके आने की ख़ुशी में तो मैं भूल ही गयी आओ आओ अंदर आओ  " ज़ोया ने कहा


"बेटा कौन है  दरवाज़े पर किससे बातें कर रही है  " ज़ोया की अम्मी ने बावर्ची खाने से पूछा


"अम्मी आपके जिगर का दूसरा टुकड़ा आया है , आपको बड़ी बेटी " ज़ोया ने कहा मज़ाक में


सेहर ( ज़ोया की अम्मी ) सब्ज़ी काट रही थी, आरज़ू के आने की खबर सुन कर मुस्कुराती हुयी सब्ज़ी छोड़  कर बाहर की तरफ दौड़ी " मेरी बेटी आयी है  ये कह कर वो उसके गले लग गयी  "


आरज़ू ने सलाम किया अपनी अम्मी को सेहर जी ने भी उससे गले मिलते मिलते ही सलाम का जवाब दिया और बोली " कितने दिनों बाद आयी है और कितनी कमज़ोर लग रही है  कुछ खा पी नही रही है क्या "


"नही अम्मी सब कुछ ठीक है , और मैं थोड़ा डाइट पर हूँ, मोटापा कोई अच्छी चीज़ नही है  बीमारियों की जड़ है  " आरज़ू ने कहा

"आग लगे ऐसी डाइटिंग को सूख कर काटा हो रही है , चल अब तू आ गयी है तुझे पहले जैसी बना कर भेजूंगी  बड़ी आयी डाइटिंग करने ये सब अमीरों के चोचले है  मेरी बेटी  तू  बैठ तेरे लिए अभी किसी से कह कर समोसे मंगा कर देती हूँ " सेहर जी ने कहा


"अरे नही अम्मी बहुत तेल होता है समोसो के अंदर  बहुत बीमारी फेल रही है  इन चाट पकौड़ो से " आरज़ू ने कहा

"कुछ नही होता एक दो समोसो से, ज़ोया देख  बाहर गली में कोई बच्चा होगा उसे पैसे देकर मंगा ले मैं जब तक चाय बनाती हूँ।" सेहर जी ने कहा

"ज़ोया रहने दे यहाँ बैठ आकर  " आरज़ू ने कहा

"आपी मंगा लेने दो तुम्हारे सदके  में मुझे भी खाने को मिल जाएंगे वैसे तो अम्मी मंगा कर देती नही है , आपके लिए मंगा रही है  तो मुझ गरीब का भी भला हो जाएगा आप को क्या परेशानी है " ज़ोया ने कहा अपनी अम्मी की तरफ देख  कर

"झूठी मक्कार कही की, वो तो मेहमान है  कभी  कभी आती है  और तुम दिन भर बस रोटी तोड़ने के अलावा कोई और दूसरा काम ही नही बस मोबाइल है और खाना है  " सेहर ने कहा

"सही है सही है , अब जब बड़ी बेटी आ गयी तो छोटी को कौन पूछेगा  छोटो की तो वैसे भी इज़्ज़त नही होती है " ज़ोया ने कहा

"अब खड़ी मत रह यहाँ पर जाकर किसी बच्चें को देख और समान मंगा " सेहर ने कहा

"छोड़ो भी अम्मी वो भी कुछ दिन बाद ससुराल चली जाएगी वो भी फिर मेहमानों की तरह ही आया करेगी  मेरी तरह " आरज़ू ने कहा

"मुझे तो डर है  ना जाने कैसे निभेगी इसकी ससुराल में जिस तरह के इसके लक्षड़ है । ना जाने किसके ऊपर चली गयी  तू तो ऐसी नही थी  मुझे तो डर है की कही इसे भरा पूरा ससुराल मिल गया जहाँ सास ससुर, देवरानी जेठानी नन्दे भी होंगी तब वहा ये कैसे करेगी  इसकी रोज़ शिकायते मिलेगी तब ही इसे अक्ल आएगी की अम्मी सही कहती थी  "सेहर जी ने कहा


"छोड़ो भी अम्मी सब सीख जाते है , ज़िन्दगी भर यही तो करना है वो भी सीख जाएगी जब तक यहाँ है  जी लेने दो उसे अपनी ज़िन्दगी कल को वही शोहर, बच्चें और उसके घर वालो की खिदमत फिर कहा  समय मिल पाता है " आरज़ू ने कहा


"कह तो तू ठीक रही है  लेकिन फिर भी पूत के पैर पालने में नज़र आते है  कल को सुनने को तो हमें ही मिलेगी की बेटी को कुछ सिखा कर नही भेजा बस मुझे डर है की ये अपनी इन नादानियों के चककर में कुछ ऐसा ना कर बैठे जिसकी सजा हम सब को भुगतना पड़े बस इसी बात से डरती हूँ " सेहर ने कहा


"खुदा पर भरोसा रखे, ऐसा वैसा कुछ नही होगा ज़ोया नादान और मुँह फट  ज़रूर है  लेकिन इतनी समझ रखती है  की क्या उसके लिए सही है  और क्या गलत  आप  परेशान मत हो सब कुछ अच्छा होगा वो भी समय आने पर अपने शोहर के रंग में रंग जाएगी जब उसपर भी घर की ज़िम्मेदारियों का बोझ आन पड़ेगा  तब वो भी नादान से ज़िम्मेदार बन जाएगी और अगर नही बनी ज़िम्मेदार तो फिर अल्लाह ने करे पछ्तायेगी  अपनी बेवक़ूफ़यों को याद करके " आरज़ू ने कहा


"चल अच्छा ये सब छोड़ ये बता तस्लीम नही आया और ये मावी सौ रहा है  इसे अंदर लेटा दे " सेहर ने कहा

"नही अम्मी मैं रिक्शा से आ गयी , उन्हें परेशान करना सही नही समझा  " आरज़ू ने कहा


"पूछ लिया था उससे, इज़ाज़त दे दी थी उसने आने की " सेहर ने पूछा 


"हाँ अम्मी इज़ाज़त लेकर ही आयी हूँ, भला बिना शोहर की इज़ाज़त लिए कैसे आ सकती थी आखिर कार वही तो जाना है लोट कर  दोबारा " आरज़ू ने मुस्कुराते हुए कहा


"मेरी समझदार बेटी, शादी के बाद सयानी हो गयी " सेहर जी ने उसका माथा चूमा और कहा

"चल तू आराम से बैठ जब तक मैं चाय बना कर लाती हूँ तेरे लिए और बता रात को क्या खाना पसंद करेगी  " सेहर ने पूछा 


"अम्मी परेशान मत हो थोड़ी देर में, मैं खुद बना लूंगी जो मुझे सही लगेगा हल्का फुल्का या जो सबको पसंद होगा" आरज़ू ने कहा


"बेटा, ससुराल से आयी बेटियों का काम करने से माये परेशान और थकती थोड़ी है , तू आराम से बैठ और मुझे बता क्या खाना पसंद करेगी  ससुराल में भी काम करती आ रही है  और यहाँ भी काम करवाऊ  अच्छा थोड़ी रहेगा मायका आराम करने के लिए होता है  जब तक माये जिन्दा होती है  बाकी बाद का कह नही सकते कब क्या हो जाए" सेहर जी ने कहा


"ओह अम्मी आपका साया हमारे ऊपर हमेशा रहे , अच्छा फिर ठीक है  मुझे अपने हाथ की कड़ी बना कर खिला दीजिये बहुत दिनों से नही खायी है  और मेरी ज़रुरत हो तो आवाज़ दे लेना गर्मी में थकना बिलकुल नही " आरज़ू ने कहा

"ठीक है बेटा तुम आराम से जाओ अंदर लाइट् आ रही है पंखा  या कूलर चला कर बैठ जाओ और मैं चाय लेकर आती हूँ, ये ज़ोया कहा चली गयी समोसे लेने गयी है  या बनाने गयी है  " सेहर जी ने कहा


"आ गयी आपकी दूसरी बेटी भी, और हाँ गली में कोई बच्चा नही था तो इसलिए मैं खुद ही समोसे लेने चली गयी थी  हलवाई की दुकान से " ज़ोया ने कहा

"क्या तू खुद हलवाई की दुकान पर चली गयी थी वो भी इसी हालत में, अल्लाह तुझे अक्ल दे मेरी बच्ची, किसी ने तुझे देखा तो नही बिना चादर या बुरखे के दुकान से समोसे लेते हुए. तू एक दिन ज़रूर हम सब की इज़्ज़त खाक में मिलाएगी बता रही हूँ, वापस आ जाती तुझे खुद हलवाई की दुकान पर जाने की क्या ज़रुरत थी पता तो है  मोहल्ले वाले कैसे है  एक मिनट नही लगाते है  किसी की बहन बेटी के बारे में आप शनाप बकने में उन्हें तो बस मौका चाहिए  " सेहर ने कहा


"अरे अम्मी ऐसा भी कुछ नही हुआ, और कोई नही था  हलवाई की दुकान पर और वैसे भी मैं अपना मुँह ढक कर गयी थी  किसी ने नही देखा था, और ये मोहल्ले वाले तो है ही ऐसे इनके घरों में चाहे  बच्चों में महाभारत छिड़ी रहती हो लेकिन फिर भी इन्हे दूसरों की बहन बेटियों को देख कर ही बातें बनाने और घरों में आग लगाने में मज़ा आता है  " ज़ोया ने कहा


"आज तो चली गयी थी ऐसे ही लेकिन आयींदा बिना मुझसे  पूछे ऐसे ही हलवाई की दुकान पर गयी तो फिर बताउंगी, तेरा खुदा  का ही दिल चाह रहा होगा समोसो को जब ही तो बिना किसी बच्चें का इंतज़ार किए बिना ही दुकान पर चली गयी  " सेहर ने कहा

"क्या अम्मी अब बस खत्म भी करदो बात को क्यू रबर की तरह खींच रही है , कह तो रही हूँ की गली में कोई बच्चा नही था  और हलवाई की दुकान पर भी कोई नही था  जिसने मुझे देखा हो, सच बोलना भी कभी कभी भारी पड़ जाता है  घरवालों के सामने " ज़ोया ने गुस्से में कहा


"जो दिल में आये करो जब तुम्हारा बाप आये और पूछे तो खुद ही सफाई देती रहना की क्यू गयी थी हलवाई की दुकान पर भले ही किसी ने नही देखा होगा लेकिन फिर भी कोई ना कोई होगा ज़रूर जो ये बात तुम्हारे अब्बू तक पंहुचा ही देगा " सेहर जी ने कहा


"अरे अम्मी अब छोड़े भी, इतना क्यू डर रही है कुछ नही होगा वैसे भी मैं आयी हूँ अब्बू को संभाल लूंगी अगर कुछ पूछेंगे भी तो, लाए अब जाकर चाय लेकर आ जाए मेरे लिए समोसो की महक मेरी सारी डाइटिंग की ऐसी की तैसी लगा रही है  जितना वजन मैने ससुराल में कम किया था आप उतना मुझे यहाँ वापस करा देंगी " आरज़ू ने कहा बात को खत्म करने के लिए 


"ठीक है  बेटा अभी लाती हूँ, और तू जोया मेरे साथ बावर्ची खाने में आओ कही फिर जाकर मोबाइल में घुस जाए थोड़ा बहुत काम है  वो करना है  तुझे  " सेहर जी ने कहा


"अरे अम्मी मैं आ जाती हूँ उसे पढ़ने दो बेवजह गर्मी में किसी को तकलीफ मत दो " आरज़ू ने कहा

"नही नही कोई तकलीफ नही हो रही है, और ये काम चोर पढ़ाई का बहाना बना कर हर बार काम से बच जाती है  लेकिन आज  नही, आज इसे बावर्ची खाने में मेरी मदद करानी ही होगी चल जोया अंदर चल और आटा गूँद " सेहर जी ने कहा थोड़ा गुस्से से


"ज़ोया बहुत बुरा सा मुँह बना कर बावर्ची खाने में घुस गयी  और आटा निकालने लगी  "

सेहर जी ने भी कटी हुयी सब्जी फ्रिज में रख दी और दही निकालने लगी कड़ी बनाने के लिए ।

ये देख ज़ोया बोली " ये क्या अम्मी सब्जी फ्रिज में क्यू रख दी क्या आज खाना नही बनेगा  "

"क्यू नही बनेगा, आरज़ू ने कड़ी बनाने का कहा है  इसलिए फ्रिज से दही निकाल कर बाहर ठंडा करने के लिए रख रही हूँ " सेहर जी ने कहा


"वाह, आपी के मज़े है  उनके लिए कटी हुयी सब्जी फ्रिज में रख दी गयी और उनकी फरमाइश का खाना बन रहा है  और हमारे  लिए कभी कोई नापसंद सब्ज़ी के बावज़ूद भी कोई नयी दूसरी सब्जी नही बनती  इतना बेदभाव क्यू " ज़ोया ने कहा

"ठीक से काम कर, वो मेहमान है  जब तेरी भी शादी हो जाएगी और तू भी आएगी तब तेरी भी मनपसंद की चीज़े बना दूँगी " सेहर जी ने कहा


"इसका मतलब अपनी मनपसंद चीज़े खाने के लिए शादी करना पड़ेगी तब ही मिलेगी उसके अलावा नही " ज़ोया ने कहा

"हाँ सही समझी तू  " सेहर ने कहा

"तो फिर देर किस बात की है  अम्मी कल ही मेरा निकाह पढ़वा दो मैं तो तैयार हूँ इसी बहाने पढ़ाई से भी जान छूट जाएगी और अपना पसंदीदा खाना भी खाने को मिल जाएगा " ज़ोया ने कहा फटाक से


"बेशर्म कही की, तुझे शर्म नही आती है  अपनी शादी की बात अपने मुँह से करते हुए  बगैरत ना जाने किस पर चली गयी " सेहर ने कहा


"शर्म की क्या बात, आप  लोग भी तो दिन भर यही बातें करते रहते हो शादी, शादी तो मैने खुद ही कह दिया, तो क्या सोचा है  आपने  कब शादी का जोड़ा पहन कर तैयार रहू  " ज़ोया ने कहा और अपनी माँ के गाल खींच लिए 

सेहर जी ने उसकी तरफ हाथ उठाया मारने के लिए लेकिन जब तक वो भाग गयी थी वहा  से वो अपना गुसा बातों से उतारते हुए बोली " देख  तेरा बंदोबस्त करके रहूंगी  आने दे तेरे बाप को तू पढ़ लिख कर बिलकुल बिगाड़ रही है  देख तेरे हाथ पीले करवाती हूँ फिर तुझे अक्ल आएगी जब  जाएगी ससुराल तब तेरी नादानियाँ दूर होंगी "


इसी तरह दिन गुज़रते रहे । आरज़ू के आने की वजह से अब ज़ोया हम्माद से ज्यादा बातें नही कर पा रही थी क्यूंकि वो उसके साथ सोती थी ।


आरज़ू को थोड़ा थोड़ा  शक होता की ज़ोया कुछ तो कर रही है  लेकिन वो वहम समझ कर बात को रफा दफा कर देती।

उधर तबरेज  आसिफ की दुकान पर जा रहा था  लेकिन उसका मन अपना काम करने को ही चाह रहा था, उसे लग रहा था मानो उसके हुनर को जंक लग रहा हो खाली दुकान पर बैठ कर वो भाग दौड़ में लगा था कही काम की।


अनुज को उसने पैसे दे दिए थे  जिस वजह से उसकी एक परेशानी तो हल हो गयी थी ।


वही  दूसरी तरफ , हुसैन साहब की दुकान पर साद, और उसका भाई और उनके दोस्त मिलकर चोरी की गाड़िया लाकर उन्हें संभाल कर बेच रहे थै ।


थोड़े ही दिनों में अच्छे पैसे कमा लिए थै उन लोगो ने ग्राहक अब कम आ रहे थे उनकी दुकान पर क्यूंकि उनका रावय्या ग्राहकों के साथ अच्छा नही था।


अब दुकान पर बीड़ी, सीगरेट और बियर आम हो गयी थी । हुसैन साहब बीमार रहने लगे थे जिस वजह से वो दुकान नही जा पा रहे थे । जिसका फायदा उनके बीवी बच्चें उठा रहे थे  रुकय्या जब शाम को अपने हाथ में पैसा देखती तो खुश हो जाती।

धीरे धीरे सबकी ज़िन्दगिया अपने आपने हिसाब से पटरी पर चल रही थी । फिर एक दिन तबरेज  के पास जुनेद आया  जो की बेहद खुश लग रहा था  उसके हाथ में कुछ था  जो वो उसे दिखाना चाहता था ।


आखिर ऐसा क्या था जुनेद के हाथ में जो वो इतना खुश था जानने के लिए पढ़ते रहिये हर सोमवार।

धन्यवाद 

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2 Comments

MR SID

08-Aug-2022 10:23 AM

Bahut khub

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Nancy

08-Aug-2022 10:07 AM

Shaandar

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